अनियमित दिनचर्या और अनुचित आहार- विहार करने से शरीर की पाचन क्रिया – प्रणाली (digestion) ठीक से काम नहीं कर पाती जिससे खाया – पिया ठीक से हजम नही हो पाता और इसके फलस्वरूप शरीर में निर्बलता (weakness), रक्त की कमी (anaemia), दुबलापन, यकृत व प्लीहा में विकार, पाण्डु (jaundice), कामला, मासिक धर्म की गड़बड़ी आदि कई व्याधियां शरीर को पीड़ित कर देती हैं! ऐसी स्थिति में ‘ ताप्यादि लौह ‘ का सेवन स्त्री – पुरुष के लिए बहुत गुणकारी सिद्ध होता है! इस योग के बारे में उपयोगी जानकारी प्रस्तुत की जा रही हैं!

घटक द्रव्य– हरड़, बहेड़ा, आंवला, सोठ, पीपल, काली मिर्च, चित्रक मूल और वयविडग- प्रत्येक 25-25 ग्राम। नागर मोथा 15 ग्राम , पीपलामूल, देवदारू, दारूहल्दी, दालचीनी और चव्य – प्रत्येक 10-10 ग्राम। मण्डूर भस्म 200 ग्राम और पिसी हुई मिश्री 320 ग्राम।
निर्माण विधि– सब द्रव्यों को अलग-अलग कूट पीस कर छान लें और जो बुरादा बचे उसे फिर फिर से कूट पीस कर छान कर मिला लें और फिर सब पदार्थों को मिला कर तीन बार छान कर एकजान करके बर्नी में भर लें।
मात्रा और सेवन विधि– चार चार रत्ती (आधा-आधा ग्राम) सुबह शाम मूली के रस या ताजे गो मूत्र के साथ सेवन करे।
लाभ– ताप्यादि लौह के सेवन से कई व्याधियां दूर होती है जैसे ज्वर के बाद उत्पन्न हुई कमजोरी और रक्त की कमी, स्त्रियों के मासिक ऋतु स्राव में गड़बड़ी, पाण्डु, कामला , यकृत एवं प्लीहा के विकार आदि। मलेरिया बुखार उतरने के बाद आई कमजोरी और खून की कमी (एनीमिया) दूर करने की यह बहुत ही अच्छी औषधि है। यह योग हिमोग्लोबिन (haemoglobin) को सामान्य स्तर तक उठाने वाला और शरीर की इन्द्रियों को बलवान बनाने वाला है।
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