आजकल खान पान की बदलती आदतों और निष्क्रिय जीवनशैली ने डायबिटीज (Diabetes) को अधिकांश लोगों को होने वाली एक आम बीमारी बना दिया है। लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि इसे गंभीरता से न लिया जाए। डायबिटीज या मधुमेह के प्रति जरा सी भी लापरवाही इसे बहुत गंभीर और असाध्य बना सकती है। डायबिटीज क्या है, यह क्यों होती है तथा इससे कैसे बचा जा सकता है, तथा यह बीमारी हो जाने पर इसे कैसे कंट्रोल किया जा सकता है? आइए जानते हैं इस लेख में –
- डायबिटीज क्या है? What is Diabetes?
- डायबिटीज कितने प्रकार का होता है? Types of Diabetes
- डायबिटीज होने की सम्भावना किसे अधिक होती है?
- यदि किसी के माता-पिता को डायबिटीज है तो उसके बच्चे को डायबिटीज होगी ही। इस बात में कितनी सच्चाई है?
- डायबिटीज होने के मुख्य कारण क्या है? Reasons behind Diabetes
- डायबिटीज होने के प्रमुख लक्षण कौन कौन से हैं? Symptoms of Diabetes
- क्या अधिक उम्र के लोगों को डायबिटीज होने की सम्भावना अधिक रहती हैं?
- निष्क्रिय जीवनशैली के अतिरिक्त डायबिटीज होने के पीछे और क्या क्या कारण है?
- किस प्रकार का व्यायाम करना चाहिए?
- डायबिटीज से पीड़ित व्यक्तियों को किस तरह का आहार लेना चाहिए? Diet for diabetic persons
- डायबिटीज को जड़ से कैसे खत्म किया जा सकता है?
- गंभीर डायबिटीज क्या है व इसके क्या लक्षण हैं?
- डायबिटीज के मरीजों को किस प्रकार का खाना खाना चाहिए जिससे कि उनकी सेहत को लाभ हो?
- डायबिटीज के रोगी को किन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए?
- इंसुलिन देने की आवश्यकता कब पड़ती हैं?
- इंसुलिन लेने का सही तरीका क्या है?
- इंसुलिन के साइड इफेक्ट्स क्या हैं? Side effects of Insulin
डायबिटीज क्या है? What is Diabetes?
डायबिटीज ऐसी स्थिति है जिसमें रक्त में शर्करा का स्तर सामान्य से अधिक हो जाता है। अग्नाशय में इंसुलिन (Insulin) नामक हार्मोन के न बन पाने या कम बनने के कारण ऐसी स्थिति आती है। आयुर्वेद में डायबिटीज को मधुमेह के नाम से पुकारा जाता है। इसका अर्थ है चीनी की अधिकता, फिर वह चाहे रक्त में हो या मूत्र में।
जब भी हम कुछ खाते हैं तो हमारे शरीर में शुगर बनता है। ये एक लगातार हमेशा चलने वाली प्रकिया है। लेकिन हमारा शरीर बीमार न हो, उसके लिए जरूरी है कि हमारे शरीर में शुगर की मात्रा नियंत्रित रहे। यह काम हमारे शरीर का एक अंग करता है, जिसे पैंक्रियाज (Pancreas) या अग्न्याशय कहते हैं।
पैंक्रियाज से इंसुलिन हार्मोन बनता है जो रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है। जब यह नियंत्रण सही प्रकार से नही हो पाता और शरीर में आवश्यकता से अधिक मात्रा में शुगर उत्पन्न हो जाता है तो व्यक्ति को डायबिटीज हो जाता है।

डायबिटीज कितने प्रकार का होता है? Types of Diabetes
डायबिटीज के मुख्य रूप से दो प्रकार होते हैं।
- टाइप-1 डायबिटीज
- टाइप-2 डायबिटीज
पहले प्रकार का डायबिटीज जन्म से होता है, क्योंकि ऐसे लोगों में पैंक्रियाज अंग होता ही नही है जिससे शुगर नियंत्रित नहीं हो पाती है। इसे टाइप -1 डायबिटीज कहते हैं। दूसरा प्रकार जिसे हम टाइप-2 डायबिटीज भी कहते हैं, इसमें हमारे शरीर में इंसुलिन कम मात्रा में बनता है जिससे वह शरीर में शुगर को नियंत्रित नही कर पाता।
टाइप-1 डायबिटीज प्राय: 18 वर्ष से कम आयु में पाया जाता है! ऐसे रोगियों का अग्नाशय (पैंक्रियाज) इंसुलिन बना ही नहीं पाता। परिणामस्वरूप ऐसे लोगों को नियमित रूप से इंसुलिन के इंजेक्शन लेने पड़ते हैं ताकि रक्त में ग्लूकोज का स्तर नियंत्रण में रहे। ऐसे रोगियों को केवल दवा से आराम नही आता।
टाइप-2 डायबिटीज ही सामान्यत: ज्यादातर लोगों में पाया जाता है। इस प्रकार के रोगी 40 वर्ष से अधिक होते हैं या मोटापे से ग्रस्त होते हैं। इस रोग में इंसुलिन कम मात्रा में बनती है तथा अपना असर भी खो देती है, जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर नियंत्रित नही रह पाता। इसे दवाइयों के सेवन से काबू किया जा सकता है। टाइप-2 डायबिटीज को काबू करने में जीवनशैली में सुधार, योग, तनाव प्रबंधन, वजन में कमी, आहार, नियमितता तथा ध्यान आदि से विशेष मदद मिलती है।
डायबिटीज होने की सम्भावना किसे अधिक होती है?
डायबिटीज होने के बहुत से कारण हो सकते हैं। अगर किसी पतले व्यक्ति की लाइफस्टाइल सही नहीं है तो डायबिटीज उसे भी हो सकता है। वहीं अगर कोई मोटा व्यक्ति प्रतिदिन व्यायाम करे और अपने खान-पान का ध्यान रखे तो उसे डायबिटीज होने की सम्भावना बहुत कम होती है।
यदि माता-पिता में डायबिटीज रोग पाया जाता है तो बच्चों में भी यह रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती हैं। यदि माता-पिता दोनों में से किसी एक को यह रोग हो तो भविष्य में बच्चे को डायबिटीज होने का खतरा चार से पांच प्रतिशत तक बढ़ जाता है। यदि माता-पिता दोनों डायबिटीज रोगी हों तो यह प्रतिशत और भी बढ़ जाता है।
हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज तथा मोटापा, इन चारो रोगों का आपस में गहरा नाता है। यह चारों एक दूसरे को बढ़ाने में मददगार होते हैं। प्राय: यह भी देखा जाता है कि डायबिटीज रोगी हाइपरटेंशन (Hypertension) से भी पीड़ित होते हैं। या यू कहें हाइपरटेंशन वालों को भी डायबिटीज होने की अधिक संभावना होती है।

यदि किसी के माता-पिता को डायबिटीज है तो उसके बच्चे को डायबिटीज होगी ही। इस बात में कितनी सच्चाई है?
डायबिटीज आनुवंशिक रोग नहीं है। हालांकि जिन बच्चों के माता-पिता में से किसी एक को भी या दोनों को यह बीमारी (बच्चे के जन्म से पहले और माता के गर्भधारण के दौरान) होगी, ऐसे बच्चों में डायबिटीज रोग होने की संभावना तो बढ़ ही जाती है, परंतु यह कहना कि जिन बच्चों के माता-पिता को डायबिटीज रोग है, उनके बच्चों को भी यह रोग जरूर होगा, यह गलत है। यह एक मिथ है, क्योंकि अगर किसी व्यक्ति के माता-पिता को डायबिटीज हो, लेकिन वह व्यक्ति अपने खान पान पर ध्यान दे और स्वस्थ जीवनशैली अपनाए तो उसे डायबिटीज होने की सम्भावना बहुत कम है।
डायबिटीज होने के मुख्य कारण क्या है? Reasons behind Diabetes
डायबिटीज होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे-
- कार्बोहाइड्रेट की अधिकता वाले खाद्य पदार्थों का अत्यधिक सेवन (जैसे गेंहू, मैदा, चावल, चीनी, गुड़, मिठाई, गन्ने का रस, कुछ फल आदि)
- भोजन में कम प्रोटीन का सेवन, इस वजह से मांसपेशियों की ताकत कम हो जाना
- हृदय और गुर्दों का सामान्य रुप से काम न करना
- पैंक्रियाज नामक अंत:स्रावी ग्रंथि (अग्न्याशय) से इंसुलिन नामक हार्मोन का स्राव न होना
- मानसिक तनाव, चिंता और शोकाकुल मन
- जंक फूड का अत्यधिक सेवन
- अधिक भोजन करना परंतु शारीरिक श्रम बिल्कुल भी न करना, सक्रिय जीवनशैली (Active Lifestyle) का अभाव
- मोटापा डायबिटीज का प्रमुख कारण है।
- दुकानदारों, ऑफिसों में बैठकर काम करने वाले कर्मचारियों, आरामतलब लोगों एवं बुजुर्गों (निष्क्रिय जीवनशैली के कारण) में यह अधिक देखने को मिलता है।
डायबिटीज होने के प्रमुख लक्षण कौन कौन से हैं? Symptoms of Diabetes
डायबिटीज या मधुमेह के प्रमुख लक्षणों की बात की जाए तो इनमें थकान, आंखों में धुंधलापन, शरीर में बेचैनी, सर भारी होना, अधिक भूख लगना, बार – बार मूत्र त्याग आदि लक्षण नजर आते हैं। साथ ही डायबिटीज के रोगी प्राय: शिकायत करते हैं कि उनके घाव जल्दी नही भरते। उन्हें बार बार संक्रमणों का शिकार भी होना पड़ता है। रोगी थकान, सुस्ती तथा मांशपेशियों में जकड़न महसूस करता है।
क्या अधिक उम्र के लोगों को डायबिटीज होने की सम्भावना अधिक रहती हैं?
डायबिटीज होने के पीछे उम्र का फैक्टर विशेष प्रभाव नहीं डालता है। ये बीमारी होने या न होने की संभावना बहुत कुछ हमारी लाइफस्टाइल पर निर्भर करती है। इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति के माता-पिता को डायबिटीज है तो उस व्यक्ति को भी डायबिटीज होने की थोड़ी अधिक संभावना रहती है। लेकिन अगर वह व्यक्ति अपने खान-पान का ध्यान रखे और पर्याप्त शारीरिक श्रम या व्यायाम करे तो उसे डायबिटीज होने की संभावना काफी कम हो जाती है। युवाओं में भी डायबिटीज होने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
निष्क्रिय जीवनशैली के अतिरिक्त डायबिटीज होने के पीछे और क्या क्या कारण है?
तनाव भी इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण है। और अगर हम अपने खान पान की बात करें तो आज फास्ट फूड व जंक फूड हमारे जीवन का एक हिस्सा बन गए है। साथ ही दौड़ती भागती जिंदगी में काम के घंटे बढ़ गए हैं और आराम का समय कम हो गया है।
डायबिटीज से बचने के लिए यह बहुत जरुरी है कि हम आठ घंटे की नींद पूरी करें, साथ ही नियमित रूप से व्यायाम भी करें। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि अगर कोई व्यक्ति खुद को पूरी तरह स्वस्थ समझता है फिर भी वह साल में एक बार अपना पूरा चेकअप अवश्य कराए व एक्सरसाइज जरूर करे। इन सब के अलावा यह भी बहुत जरूरी है कि शराब, सिगरेट व अन्य किसी भी प्रकार के नशे से जितना हो सके दूर रहें।
किस प्रकार का व्यायाम करना चाहिए?
किसी भी व्यक्ति के लिए टहलने से अच्छा व्यायाम और कोई हो ही नहीं सकता है। अगर कोई भी व्यक्ति 45 मिनट वॉक करे तो उससे बेहतर कुछ नहीं है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति ब्रिस्क वॉक (तेज चलना) भी कर सकता है।
डायबिटीज से पीड़ित व्यक्तियों को किस तरह का आहार लेना चाहिए? Diet for diabetic persons
मधुमेह से पीड़ित लोगों को ऐसा भोजन करना चाहिए जिसमें विटामिन की मात्रा अधिक हो तथा खास तौर पर भोजन में प्रोटीन की अच्छी खुराक लेना जरूरी है।
हमारे शरीर को प्रतिदिन 2000 कैलोरी की आवश्यकता होती है तो इसे ध्यान में रखते हुए ऐसा खाना खाएं जिससे आपका पेट भी भर जाए और उसमें कैलोरिज भी ज्यादा न हो। इसलिए सब कुछ खाएं लेकिन उसकी मात्रा का ध्यान रखें व इस बात का भी की आप उसे किस समय खा रहे हैं।
उदाहरण के लिए अगर किसी डायबिटीज के पेशेंट को चावल खाने का मन हो तो वह थोड़ी मात्रा में उसे खा सकता है बस वह इस बात का ध्यान रखें कि उसका माड़ निकाल दे तथा उसे सुबह या दोपहर के समय खाएं, क्योंकि हम दिन को काफ़ी सारे काम करते हैं तो वो पच जाता है लेकिन रात के समय किसी भी ऐसी चीज के पाचन में समस्या आती है।
साथ ही यह बात भी बहुत आवश्यक है कि डायबिटीज व्यक्ति कभी भूखा न रहे। अगर उसे भोजन के कुछ देर बाद भूख लगती है तो वह मुरमुरे, चने, अंडे का सफेद भाग, भुनी हुई मूंगफली, ‘मेरी गोल्ड’ बिस्किट आदि का सेवन थोड़ी मात्रा में कर सकता है।
डायबिटीज को जड़ से कैसे खत्म किया जा सकता है?
इसे जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन नियंत्रित जरूर किया जा सकता है। पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता हालंकि इसे कंट्रोल करना बहुत ही आसान है। प्रतिदिन का नियम बना लें कि आपको व्यायाम करना ही है। साथ ही आप अपनी डाइट का पुरा ध्यान रखें। भोजन में प्रोटीन की मात्रा अच्छी हो तथा फैट की मात्रा कम हो।
मल्टीग्रैन आटे का प्रयोग करें, पनीर खाएं, दूध पिएं। यह आपकी डायट के लिए अच्छा होता है लेकिन इन सब के सेवन के अतिरिक्त पेशेंट्स को उनकी डायट में प्रोटीन तथा फाइबर के सप्लीमेंट्स भी शामिल करने चाहिए।
अगर हम तेलों के सेवन की बात करें तो सरसों, नारियल व जैतून के तेल का उचित मात्रा में प्रयोग करें। समय-समय पर अपने भोजन में तेलों का प्रयोग बदल-बदल कर सकते हैं। इससे शरीर के लिए आवश्यक तत्वों की पूर्ति उचित मात्रा में हो सकती है।
गंभीर डायबिटीज क्या है व इसके क्या लक्षण हैं?
इसमें या तो डायबिटीज का लेवल 500-600 से ऊपर जा रहा है या फिर निर्धारित लेवल से नीचे। इससे बचने के लिए स्वस्थ्य दिनचर्या व परहेज बहुत ज़रूरी है, क्योंकि गंभीर डायबिटीज से न केवल आंखो की रोशनी जा सकती है बल्कि किडनियां भी खराब हो सकती है।
डायबिटीज यदि गंभीर हो जाए या बहुत लंबे समय से हो या काबू में न हो तो रोगी डायबिटीक – न्यूरोपैथी का शिकार हो सकता है। इस रोग में नाड़ियां कमजोर हो जाती हैं तथा मस्तिष्क तक संदेश नही पहुंचा पाती और रोगी को दर्द का अहसास नहीं होता।
प्राय: हृदय रोगियों को सीने के बाई ओर इंजाइना का दर्द होता है। यह दर्द केवल चलते समय महसूस होता है परंतु डायबिटीज रोगी न्यूरोपैथी के कारण इस दर्द को महसूस नही कर पाते। हां, वे चलते समय सांस लेने में कठिनाई अवश्य महसूस करते हैं। यद्दपि यह ज़रूरी नहीं कि सभी डायबिटीज रोगियों को छाती में दर्द नही होता। यही डायबिटीज हृदय रोगी में साइलेंट हृदय रोग का कारण बन जाता है। ऐसे रोगियों में घाव देर से भरने, बार-बार मूत्र आने तथा संक्रमित होने के अलावा और कोई लक्षण सामने नही आते।
डायबिटीज के मरीजों को किस प्रकार का खाना खाना चाहिए जिससे कि उनकी सेहत को लाभ हो?
डायबिटीज के मरीजों को पुरे दिन में थोड़ी थोड़ी मात्रा में छह बार खाना चाहिए। विशेषज्ञ द्वारा जो डायट चार्ट आपको दी गई है उसे फॉलो करें।
डायबिटीज रोगी को रिफाइंड भोजन की मात्रा घटाकर रेशेदार भोजन का अधिक प्रयोग करना चाहिए। इससे ग्लूकोज के आंतो में घुलने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। जिससे रक्त में ग्लूकोज का स्तर एकदम नही बढ़ता तथा तब इंसुलिन ग्लूकोज के बढ़ते हुए लेवल को कंट्रोल कर देता हैं। डायबिटीज के रोगी को वसायुक्त भोजन से बचना चाहिए, क्योंकि उन्हें हृदय रोग होते देर नहीं लगती।
गेहूं की रोटी, बेसन का चीला, पनीर, सैंडविच, पुलाव (अल्प मात्रा में) , इडली, उत्तपम, कॉर्न फ्लैक्स, सब्जियों के साथ नूडल्स, बाजरा/ज्वार, पोहा, आलू (अल्प मात्रा में), क्रीमयुक्त दूध, बेसन की रोटी, डबल रोटी, चावल (अल्प मात्रा में), सूजी, डोसा, भुने चने, बिस्किट, सब्जियों के साथ मैकरोनी, मक्का, सभी सब्जियां, डायट कोक/पेप्सी, तथा मूंगफली। आम, अंगूर, चीकू तथा केला छोड़कर सभी फल।
फलों के मामले में डायबिटीज के मरीजों के पास विकल्प बहुत कम हो जाते है। फिर भी यदि आपका किसी भी मीठे फल को खाने का बहुत मन हो रहा है तो सुबह के समय फल खा ले फिर नाश्ता न करें। फलों में सेब, नाशपाती व अमरूद खा सकते हैं लेकिन ध्यान रहे किसी चीज़ की अति न हो।
सारे अनाज खा सकते हैं। अनाज जितना खाएं उतना अच्छा है।
डायबिटीज के रोगी को किन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए?
हर प्रकार के शर्बत, हर प्रकार की मिठाइयां, चीनीयुक्त पेय, चुकंदर, गाजर, केक, पेस्टरी, मीठी गोलियां, टॉफिया तथा चॉकलेट, मीठे बिस्कुट, आइसक्रीम, चीनी, गुड, शक्कर , गन्ने का रस, अनाजों में गेंहू और चावल तथा अन्य अनाज जिनमें कार्बोहाइड्रेट अधिक होते हैं।
कुछ भोजन विशेषज्ञ का मत है कि उक्त खाद्य पदार्थों के आलावा आलू और पावरोटी (ब्रेड) से भी परहेज करना चाहिए। फलों में अंगूर, आम, चीनी, लीची , शरीफा, केला आदि न लें। यदि फल न छोड़ सके तो अन्य सामान्य चीनी वाले पदार्थों में कमी कर दें।
आलू उबालकर या यों कहें कि भूनकर खाया जा सकता है। इसी प्रकार चावल उबालने के बाद उसकी मांड निकालने के बाद थोड़ी मात्रा में ले सकते हैं।
शराब और कैफीन दोनों ही पेशाब अधिक स्रवित करने की क्षमता होने के कारण, गुर्दों पर अनावश्यक दबाव डालती हैं अतः इनका प्रयोग न ही किया जाए तो बेहतर है।

इंसुलिन देने की आवश्यकता कब पड़ती हैं?
डायबिटीज के प्रभाव मरीजों पर बहुत अलग-अलग होते हैं, डायबिटीज के मरीज को इंसुलिन दिया जाता है। यदि आपकी डायबिटीज कंट्रोल में नहीं होगी तो आप कई बीमारियों का शिकार हो सकते हैं।
जब व्यक्ति की लापरवाही से डायबिटीज बहुत अधिक बिगड़ जाता है तो उस पर दवाइयों का भी असर नहीं होता। इसके साथ ही यह बात भी सच है कि व्यक्ति एक स्वस्थ दिनचर्या अपना कर इंसुलिन से मुक्ति भी पा सकता है।
इंसुलिन लेने का सही तरीका क्या है?
डायबिटीज के मरीज सिरिंज और इंसुलिन की शीशी के बजाय इंसुलिन पेन का इस्तेमाल कर सकते हैं। इंसुलिन का इंजेक्शन हमेशा खाने से पहले लगाना चाहिए। सुबह नाश्ता करने से और रात में डिनर करने से 15-20 मिनट पहले इंसुलिन का इंजेक्शन लगाना चाहिए। दो इंजेक्शनो के बीच 10-12 घंटों का फासला होना जरुरी है। खाने के एकदम साथ न लगाए, क्योंकि ऐसा करने से रक्त में शुगर लेवल बढ़ सकता है।
इंसुलिन के साइड इफेक्ट्स क्या हैं? Side effects of Insulin
जिन लोगों में शुगर लेवल अधिक होता है उनको इंसुलिन देते ही शरीर के उस हिस्से में नील भी पड़ सकता है। रक्त में शर्करा का कम होना – ऐसा आमतौर पर तब होता है जब हाई डोज का इंसुलिन दिया जाता है और डायबिटीज का मरीज इंसुलिन के बाद कुछ खाता नहीं है। वजन का बढ़ना ये इंसुलिन देने का एक ऐसा साइड इफेक्ट है जो कि बहुत आम है। इंजेक्शन देने की जगह पर त्वचा का लाल पड़ना। इंजेक्शन देने वाली जगह पर त्वचा का मोटा या कठोर हो जाना।
एक समय के बाद इंसुलिन का असर नहीं होना : यदि आप लंबे समय तक एक ही लेवल की इंसुलिन डोज ले रहे हैं तो एक समय के बाद वह लेवल शुगर कंट्रोल करने में असमर्थ हो जाता है। नजीतन, इंसुलिन का लेवल बढ़ाना भी पड़ सकता है जिससे शुगर कंट्रोल किया जा सके। त्वचा संक्रमण भी इंसुलिन के कारण हो सकता है। कई बार एक ही जगह पर रोज इंसुलिन देने से उस जगह पर एलर्जी भी हो सकती है या फिर उस जगह पर लाल दाने होना या रैशेस भी पड़ सकते हैं।
ऐसे में आपको जरुरी है कि आप इंसुलिन ध्यान से त्वचा को लचीला करके दे या फिर आप इंसुलिन के बाद डिटॉल या किसी एंटीबायोटिक से त्वचा के उस हिस्से पर कुछ समय के लिए रूई को दबाकर रख सकते हैं। इससे दर्द भी नहीं होगा और होने वाले त्वचा संक्रमण या त्वचा की समस्याओ को भी रोका जा सकता है।
Disclaimer : इस वेबसाइट पर उपलब्ध सभी लेख और जानकारी केवल शैक्षणिक उद्देश्य के लिए हैं। इनका उपयोग किसी भी स्वास्थ्य समस्या या बीमारी के उपचार हेतु बिना विशेषज्ञ सलाह के नहीं किया जाना चाहिये। चिकित्सकीय परीक्षण और उपचार हेतु सदैव एक योग्य चिकित्सक से परामर्श करना चाहिये।